08 Dec 2019 | 3 min read
भारत की एक संस्था है जिसका नाम है सिविल ट्रांस यूनियन। यह संस्था क्रेडिट रिपोर्ट तैयार करती है जिसके अंदर एक 3 अंकों का क्रेडिट स्कोर होता है। यह स्कोर 300 से 900 के बीच होता है लेकिन ज्यादातर 750+ स्कोर रखने वालों को लोन दिया जाता है। इसी क्रेडिट स्कोर के आधार पर बैंक निर्धारित करता है की किसी व्यक्ति को लोन दिया जा सकता है या नहीं। सरल भाषा में कहें तो क्रेडिट रिपोर्ट में आपके द्वारा लिए गए लोन तथा उनका समय अनुसार भुगतान करने का सारा लेखा-जोखा होता है। हालांकि इससे जुड़े कुछ मिथक भी हैं जिन पर लोग आंख मूंदकर विश्वास कर लेते हैं और बाद में पछताते हैं। आइए जानते हैं आखिरकार वह क्या मिथक हैं जिनसे छुटकारा पाकर आप बाद में पछताने से बच सकते हैं
शर्मा जी ने पिछले महीने ही तो लोन पर नई कार ली थी और उससे कुछ महीने पहले उन्होंने लोन पर घर भी लिया था अब तो पक्का उनका क्रेडिट स्कोर बेकार हो जाएगा और उनको लोन मिलने में मुश्किल होगी।
रुकिए! कहीं आप भी तो ऐसा नहीं सोच रहे ? क्या आपको भी लगता है कि ज्यादा लोन लेने से क्रेडिट स्कोर खराब होता है?
जी नहीं..
कोई भी लेंडर लोन देने से पहले देखता है कि लोन लेने वाले ने अपने पुराने लोन समय पर चुकाए हैं या नहीं। क्रेडिट रिपोर्ट से यह जान लेता है की वह कर्ज चुकाने के मामले में गंभीर है या नहीं। इसी आधार पर बैंक लोन मुहैया कराता है। जब तक वह अपना लोन समय से चुकाता है, उसे नया लोन लेने में कोई परेशानी नहीं आती और ना ही उसका क्रेडिट स्कोर खराब होता है।
जी हां बहुत से लोगों को यह लगता है की जब उन्होंने लोन लिया ही नहीं तो क्रेडिट स्कोर अच्छा ही होगा ।लेकिन स्थिति बिल्कुल उलट है। दरअसल, लोन ना लेने पर क्रेडिट हिस्ट्री खाली रहती है जिससे लेंडर को क्रेडिट बिहेवियर के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल पाती। आसान भाषा कहें तो, लेंडर के लिए एक असमंजस की स्थिति बन जाती है की लोन लेने वाला समय पर लोन चुका भी पाएगा या नहीं।
अगर आप भी लोन लेना चाहते हैं तो सबसे पहले यह जान लीजिए की अगर आपने कोई लोन नहीं लिया है तो आपकी क्रेडिट हिस्ट्री भी नहीं होगी जिससे आपको लोन मिलने में परेशानी आ सकती है। इसलिए आप पहले अपना क्रेडिट स्कोर बनाने पर ध्यान दें। इसके लिए आप कोई छोटा पर्सनल लोन,क्रेडिट कार्ड या किसी अन्य प्रकार का कोई लोन ले सकते हैं। जैसे-जैसे आप अपने कर्ज का भुगतान करते हैं वैसे- वैसे आपकी क्रेडिट हिस्ट्री बनने लगती है और उसी आधार पर आपका क्रेडिट स्कोर भी।
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हम सब मे एक अच्छाई छुपी हुई है जिसके कारण हम मुश्किल में लोगों की मदद करते हैं और किसी साथी का क्रेडिट स्कोर खराब होने के समय हम लोन के लिए सह-आवेदन करते हैं।
लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की सह आवेदक बनने से भी आपके क्रेडिट स्कोर पर प्रभाव पड़ता है। क्योंकि जब आप किसी लोन के लिए सह आवेदक के रूप में आवेदन करते हैं तो आप भी एक आवेदक ही होते हैं। जिससे कि लोन चुकाने की जिम्मेदारी आपकी भी बन जाती है। इसी बीच यदि मुख्य आवेदक अपना लोन चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो लोन चुकाने की जिम्मेदारी आपकी बन जाती है। ऐसे में यदि आप भी लोन नहीं चुका पाते तो आपके क्रेडिट स्कोर पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है।
आमतौर पर लोगों का मानना है की ज्यादा आमदनी का मतलब ज्यादा क्रेडिट स्कोर होता है। अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो यह गलत है।
एक अच्छी आमदनी आपके लोन लेने के मौके तो बढ़ाता है क्योंकि बहुत सारे बैंकरों की यह मांग होती है की आवेदक की आमदनी अच्छी खासी होनी चाहिए। हालांकि इसका क्रेडिट स्कोर से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है क्योंकि क्रेडिट रिपोर्ट बनाते समय, क्रेडिट ब्यूरो उसमें दर्ज करता है कि आपने किस प्रकार का और कितना कर्जा लिया हुआ है और आप एक महीने के भीतर कितनी किश्ते चुका रहे हैं। इस आधार पर बैंक गुणा-भाग करके आपकी आय और आपकी देनदारी का अनुपात ज्ञात करता है। अनुपात 50% से अधिक होने पर बैंक आपका आवेदन रद्द कर सकता है। ऐसा करने के पीछे बैंक की मंशा सीधी है कि वह आवेदक को और लोन देकर उस पर लोन का अतिरिक्त भार नही डालना नहीं चाहता।
आसान भाषा में कहें तो लोन लेने के लिए अच्छी खासी इनकम का होना जरूरी है पर इसका क्रेडिट स्कोर ओर से कोई सीधा संबंध नहीं है वल्कि लोन लेने के लिये आय और भुगतान का अनुपात 50% से कम होना चाहिए।
काफी सारे लोगों को यह गलतफहमी है की क्रेडिट स्कोर चेक करने से क्रेडिट स्कोर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसी कारण वह अपना क्रेडिट स्कोर चेक नहीं करते। हालांकि सच्चाई इसके विपरीत है क्योंकि क्रेडिट स्कोर चेक करने से उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वल्कि क्रेडिट स्कोर चेक ना करने का दुष्प्रभाव हो सकता है।
अभी हाल ही के सर्वे में यह पाया गया है की 74% भारतीय ग्राहक साल में दो बार अपना क्रेडिट स्कोर चेक करते हैं। क्रेडिट स्कोर चेक करने से उसमें मौजूदा खामियों को समय रहते ही ठीक किआ जा सकता है। इसके अलावा लोन लेने वालों को यह भी जानकारी होनी चाहिए की क्रेडिट स्कोर चेक करने के 2 तरीके होते हैं पहला एक ग्राहक खुद अपना क्रेडिट स्कोर पता करता है। दूसरा एक बैंकर आपके क्रेडिट कोर को जांचता है। एक ग्राहक के तौर पर आपको हार्ड इंक्वायरी और सॉफ्ट इंक्वायरी के बीच का अंतर भी पता होना आवश्यक है। जब एक बैंक आपका क्रेडिट स्कोर चेक करने के लिए क्रेडिट ब्यूरो से आपकी रिपोर्ट मांगता है तो इसे हार्ड इंक्वायरी समझा जाता है जिससे आपके क्रेडिट स्कोर पर दुष्प्रभाव पड़ता है। लेकिन जब आप अपना क्रेडिट स्कोर चेक करते हैं तो इससे क्रेडिट स्कोर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेता।
एक जागरूक ग्राहक के तौर पर आपको यह ज्ञान होना चाहिए की क्रेडिट स्कोर किस तरह बनाया जाता है। आपको इससे जुड़े तथ्य का ज्ञान होना चाहिए ताकि इससे जुड़े मिथकों पर आप आंख मूंदकर विश्वास ना करें। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको किसी भी प्रकार के लोन लेने में कोई अड़चन नहीं आएगी।